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कभी देश के लिए मेडल जीतने वाले खिलाड़ी आज है इस हालत में | Condition of Medal Winning Players India
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जब भी किसी भी खेल में भारतीय प्लेयर देश के लिए मेडल जीत कर लाता है तब हम सभी भारतीय मिलकर इसका जश्न मनाते है सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी जीत की बधाई देते है साथ ही वो जीत के पल बार-बार देखने के लिए हम कई दिनों बाद तक उसकी हाइलाइट्स देखते है। क्यों दोस्तो हम सही कह रहें है ना ?
कई सालो तक देश की टीम का हिस्सा बनने के लिए रात- दिन की कड़ी मेहनत फिर कई मुश्किलों बाद चयन होने के बाद देश के लिए यह खिलाड़ी पदक ले कर आते है। कुछ दिनो तक उनका सम्मान होता है न्यूज चैनल इंटरव्यू लेने के लिए दौड़ते है लेकिन इन सब के बाद क्या होता है ?
देश के लिए कुछ खिलाड़ी तो ऐसे होते है जो हमेशा के लिए भारतीयों के दिलों में जिंदा रहते है वो हमेशा उनकी सोच को फॉलो करते है। भारत की अलग-अलग कंपनिया भी उनके नाम से अपने एड शूट करवाती है। खैर यह उनकी मेंहनत का फल है यह उसके हकदार है। लेकिन दोस्तो बात करें उन खिलाड़ियों की जो देश के लिए पदक जीतने के बाद भी आज अपना जीवन गुमनामी में जी रहें है आज उनकी हर उपलब्धि को भूला दिया गया है।
दोस्तो आज हम देश के उन खिलाड़ियों की बात करने वाले जिन्होंने एक समय देश के लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक देश के लिए मेडल जीत देश का नाम गर्व से ऊंचा किया लेकिन आज वो ही खिलाड़ी है जो अपना जीवन चलाने के लिए सब्जी बेच रहे या फिर दिहाड़ी पर मजदूरी कर रहें है।
1. बॉक्सर कमल कुमार
Source www.jagranjunction.com
आज भलें ही आप इस बॉक्सर को न पहचान पांए लेकिन एक समय था जब कमल कुमार नेशनल लेवल के एक बेस्ट बॉक्सर थें। कमल कुमार की सफलता का प्रमाण उनके द्वारा जिला स्तर पर जीते गए 3 गोल्ड मेडल। लेकिन आज यही बॉक्सर अपना जीवन चलाने के लिए कचरा उठा रहा है साथ ही समय निकाल कर पान की दुकान चला रहा है। आज जिला स्तर से लेकर राष्ट्र स्तर तक देश के लिए मेडल जीतने वाले बॉक्सर को इस तरह अपना जीवन जीना पड़ रहा है फिर भी कमल कहते है की जीवन में कोई काम छोटा नही होता लेकिन उनका सपना है की उनके बच्चें देश के लिए मेडल जीते और देश का नाम गर्व से ऊंचा करें।
2. गोपाल भेंगरा साल 1978 हॉकी वर्ल्ड टीम के सदस्य
Source ichef.bbci.co.uk
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इंटरनेट की रुह को अंदर से खोजने के बाद साल 1999 में छपा लेख जानकारी थी इंडियन हॉकी टीम सदस्य रह चुंके गोपाल भेंगरा की जो रांची शहर से करीब 55 किलोमिटर की दूरी पर एक गांव में रहते है। गोपाल भेंगरा वर्ष 1978 में अर्जेंटिना में हुए हॉकी वर्ल्ड कप टीम का हिस्सा थें। इस वर्ल्ड कप में टीम इंडिया कप नही जीत पाई और विजेता रही पाकिस्तान की हॉकी टीम। बस एक हार ने गोपाल भेंगरा का जीवन बदल दिया वो साल उनके हालात यह हो गए की उन्हें साल 1999 में अपना जीवन चलाने के लिए पत्थर तोड़ने का काम करना पड़ा। वर्ल्ड कप की हार के बाद उन्होंने टीम से रिटायरमेंट ले लिया था। एक देश के लिए खेले खिलाड़ी से उस समय कोई भी अभिनेता व राजनेता उनकी मदद के लिए आगे नही आया । बड़े दुख की बात है की देश के लिए खेले इस खिलाड़ी को बाद में अपना गुजारा चलाने के लिए मजदूरी का काम करना पड़ा । हाल में उनसे भारत के महान क्रिकेटर सुनिल गावस्कर मिलें बस इसी मुलाकात के बाद उनके जीवन की कहानी हम लोगो तक आयी।
3. धावक आशा रॉय
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आशा राय का जन्म पश्चिम बंगाल के हूगली के एक छोटे से गांव घनश्यामपुर में हुआ था। बता दे की आशा राय को देश की सबसे तेज महिला धावक की उपाधी मिली थी। आज भले ही इस नाम को कोई नही जानता लेकिन परिवार की विपरीत परिस्थितियों के बीच स्टेट लेवल पर रिकॉर्ड कायम किए। आशा 100 व 200 मीटर की धावक थी। नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैपियनशिप में अपने नाम 2 गोल्ड करने वाली आशा आज अपना जीवन अंधेरे में जी रही है। सरकार ने एक खिलाड़ी के जीवन को ज्यादा महत्व न देने हुए किसी प्रकार की उनके लिए सुविधा उपलब्ध नही करवाई। आशा के नाम 100 मीटर की दौड़ को 11.80 सेकेंट में पुरा करने का रिकॉर्ड दर्ज है।
4. फुटबॉल खिलाड़ी रश्मिता पात्र
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रश्मिता की इन दो अलग-अलग फोटो से उनकी जीवन कहानी बयां होती है। रश्मिता जिन्होंने फुटबाल को अपना करियर बनाते हुए देश के लिए अन्तर्राष्ट्रीय लेवल तक खेली। लेकिन परिवार की गरीबी ने उनके कदम रोक दिए वो आगे नही खेल पाई और अपने गांव आकर शादी कर ली। आज वो अपना परिवार चलाने के लिए एक पान की दुकान चला रही है।
5. पैरालंपिक खिलाड़ी मुरलीकांत पेटकर
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जनरल नॉलेज से जुड़े कई सवाल हमारे सामने आंए लेकिन क्या यह सवाल कभी आपके सामने आया की पैरालंपिक में भारत के लिए पहला पदक किसने जीता था ? तो दोस्तो बता दे की इसका सही जबाब है मुरलीकांता पेटकर जिन्होंने साल 1972 में देश के लिए यह कारनामा किया था। मुरलीकांत भारतीय सेना के पूर्व सैनिक है साल 1965 में कारगील युद्ध में वो बुरी तरह से घायल हो गए थे इस वजह से उन्होंने आर्मी से रिटायरमेंट ले लिया। मुरलीकांत ने जर्मनी में आयोजित ओलंपिक खेलों में देश के लिए स्विमिंग में गोल्ड मेडल जीता था। एक रिपोर्ट के अनुसार उनके जीवन पर बॉलीवूड एक्टर सुशात सिंह एक फिल्म का निमार्ण करने जा रहे हो सकता है इस फिल्म के बाद देश के इस आर्मी जवान व पदक विजेता को फिर से पहचान मिल जाएं।
6. तीरंदाज निशा रानी
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भारत के लिए एशियन गै्रंड प्रिक्स में भाग लेने वाली झांरखड की तीरांदाज खिलाड़ी निशा को अपने परिवार की मदद के लिए साल 2011 खेल छोड़ना पड़ा। तीरंदाज खिलाड़ी निशा ने राज्य व राष्ट्रीय लेवल तक गोल्ड मेंडल जीते लेकिन अपनी यह सब उपलब्धियां उन्हें अपने परिवार की मदद के लिए बेचनी पड़ गई। सरकार ने मदद के तौर पर महज 5 लाख का मुहावजा दिया। अपने परिवार की परिस्थितियों के आगे घिरी निशा रानी ने खेल छोड़ दिया जो हम कह सकते की देश ने अच्छे टैंलेट को गवा दिया।
7. रिले धावक सीता साहू
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साल 2011 में एथेंस में आयोजित स्पेशल ओलंपिक्स में मध्य प्रदेश राज्य की रिले धावक खिलाड़ी सीता साहु ने भारत के लिए 2 कांस्य पदक जीते थें। लेकिन आज सीता अपना जीवन चलाने क लिए गोलगप्पे बेंच रही है। सीता के इन हांलातो पर सरकार भी मदद के लिए आगे नही आई लेकिन बाद में सीता की कोशिशों के बाद उन्हें सरकार से कुछ मदद प्राप्त हुई। एक रिपोर्ट के अनुसार सीता फिर से खेल में वापसी कर देश का नाम रौशन कर सकें इसके लिए उन्हें मध्य-प्रदेश सरकार ने 3 लाख व एनटीपीसी ने 6 लाख रुपयों की मदद की ।
8. हॉकी प्लेयर, नाउरी मुंडू
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झारखंड राज्य हॉकी प्लेयर नाउरी मुंडू की करियर की बात करें तो वो भारत की राष्ट्रीय हॉकी टीम का 19 बार हिस्सा रह चुंकी है। एक रिपार्ट के अनुसार अपने 14 सदस्य परिवार का गुजारा चलाने के लिए नाउरी साल 2013 में एक स्कूल में पढ़ाती थी। जिससे उन्हें 5 हजार रुपये मिलते थें। 5 हजार रुपये से उनके परिवार की पूर्ति नही हो पाती थी। इसलिए नाउरी खेती का भी काम करती। देश की राज्य सभा में पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदूलकर ने पूर्व खिलाड़ीयों की वित्तीय सहायता का मुद्दर उठाना चहा लेकिन उन्हें बोलने नही दिया गया बाद में उन्होंने अपने सोशल अकाउंट से सरकार तक यह संदेश भेजा इस दौरान उन्होंने हॉकी प्लेयर नाउरी का भी जिक्र किया।
9. श्रवण सिंह बाधा धावक
Source thebridge.in
देश के लिए वर्ष 1954 में एशियन गेम्स में 110 मीटर की बाधा दोड़ में गोल्ड मेंडल जीतने वाले श्रवण कुमार आज अपना जीवन यापन करने के टेक्सी गांड़ी चलाते है। महज 14.7 सेंकेड में 13 बाधा दोड़ को पार करने वाले आज अपनी गरीबी के आगे हार गए है। पंजाब सरकार हर माह उनकी वित्तिय सहायता के लिए 1500 रुपयों की मदद की।
10. धावक माखन सिंह
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धावक का नाम आता है तो हमें बस मिल्खा सिंह लेकिन एक धावक थे माखन सिंह जिन्होंने साल 1962 में राष्ट्रीय खेलों में मिल्खा सिंह को भी मात दी थी। माखन सिंह ने 1964 में आयोजित समर ओलंपिक्स में भी देश के लिए खेले थे। 1972 में सेना से रिटायरमेंट के बाद अपने गांव में ही रहकर एक स्टेश्नरी की दुकान चलाते थें मधूमेह से पीड़ित माखन सिंह जी के पैर में चोट लग जाने कारण उनका एक पैर काटना पड़ा था। अपने शानदार खेल व देश सेवा के लिए अर्जुन अवॉर्ड पाने वाले माखन सिंह ने गरीबी के साये में ही अपनी अंतिम सांस ली।
आज हम हर भारतीय नागरीक व सरकार को यह जिम्मेदारी समझनी होगी की देश के लिए पदक हासिल करने वाले खिलाड़ी कारणवंश खेल से दूर हो जाने के बाद दर्द का जीवन न जिएं इसके लिए सरकार को इनके हितों के लिए सख्त कदम उठाने होगें।
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