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इच्छाशक्ति को सलाम , अगर मन में दृढ विश्वास और कुछ करने की चाह हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता

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इच्छाशक्ति को सलाम
अगर मन में दृढ विश्वास और कुछ करने की चाह हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता.ऐसी ही एक मिशाल पेश की है कश्मीर की लड़कियों ने. जिन्होंने समाज की रूढ़िवादी परम्पराओं को मानते हुए अपने मन में कुछ करने की चाह को जिन्दा रखा और न केवल चाह को जिन्दा रखा बल्कि जो चाहा वो करके भी दिखाया.
दरअसल ,कश्मीर में इस वक़्त इन्ही लड़कियों के चर्चे हैं जिन्होंने बुर्का और हिजाब पहनकर क्रिकेट जैसा खेल जीतकर दिखाया.इन लड़कियों में से एक है बारामूला के गवर्नमेंट वुमंस कॉलेज की कैप्टन इंशा. इंशा हिजाब पहनकर, कंधे पर क्रिकेट किट टांगकर अपनी स्कूटी से कॉलेज के ग्राउंड में रोजाना अभ्यास के लिए जाती हैं. उनके अलावा दूसरी लड़कियां भी उनके साथ हैं, जो हिजाब-बुर्का पहनकर उनके साथ क्रिकेट खेलती हैं. इनके लिए चुनौतियां केवल क्रिकेट के मैदान पर ही नहीं हैं बल्कि इनको सामाजिक और मजहबी रूढ़िवादियों का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन,ऐसा होने के बावजूद भी इस महिला क्रिकेट टीम ने पिछले हफ्ते 'इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट चैम्पियनशिप' में जीत का परचम लहराया है.
इन्होंने किया प्रोत्साहित
इनके भी सफर की शुरुआत मुश्किलों के साथ हुई. शुरू-शुरू में समाज ने इनकी क्रिकेट खेलने की चाह को अच्छा नहीं माना और इन पर तंज कसे. इंशा बताती है कि हमारे पास कुछ अच्छी खिलाडी हैं, जिनमें से एक है 'राब्या'. राब्या के परिवार ने क्रिकेट खेलने की इजाजत केवल एक शर्त पर दी थी कि उन्हे बुर्का पहनकर खेलना होगा. इसी तरह दूसरी लड़कियों को भी हिजाब पहनकर खेलने की शर्त पर इजाजत मिली.
राब्या के वालिद एक मजदूर हैं और इंशा के पिता बशीर अहमद मीर बारामूला में फलों के व्यापारी हैं.बशीर का कहना है "कुछ तो लोग कहेंगे क्योंकि लोगों का काम है कहना और मैं लोगों की बातों को तवज्जो नहीं देता हूँ और कॉलेज में माली की जिम्मेदारी निभाने वाले मोहम्मद अशरफ का कहना है , "मुझे बहुत खुशी होती है, जब ये खेलती हैं और जीतती भी हैं.तब लगता है कि मेरी मेहनत बेकार नहीं हुई और जब आज लड़कियाँ हर जगह लड़कों से बराबरी कर रही हैं तो फिर हमें भी भेदभाव नहीं करना चाहिए.
इच्छाशक्ति को सलाम , अगर मन में दृढ विश्वास और कुछ करने की चाह हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता