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नाथूराम गोडसे की कहानी जाने | All about Nathuram Godse In Hindi

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नाथूराम गोडसे की कहानी जाने | All about Nathuram Godse In Hindi
नाथूराम गोडसे का जन्म - 19 मई 1910 - बारामती, पुणे जिला, ब्रिटिश भारत
नाथूराम गोडसे की मृत्यु - 15 नवम्बर 1949 (उम्र 39) -अम्बाला जेल, पंजाब, भारत
मृत्यु का कारण - फाँसी
राष्ट्रीयता - भारतीय
प्रसिद्धि कारण - भारत के राष्ट्रपति(महात्मा गाँधी ) की हत्या के कारण
नाथूराम गोडसे का प्रारम्भिक जीवन इतिहास -
नाथूराम गोडसे का जन्म भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे के निकट बारामती नमक स्थान के चित्तपावन नामक गांव में एक मराठी परिवार में सन 19 मई 1910 को हुआ था| इनके पिता विनायक वामनराव गोडसे Post- Office में कम करते थे और माँ लक्ष्मी गोडसे एक गृहणी थी| नाथूराम का बचपन का नाम रामचंद्र थाइनके जन्म से पहले इनके माता-पिता की सन्तानों में
3 संतानों की मोंत हो जाने से परिवार(family) में केवल एक पुत्री है जीवित बची थी इसलिये नाथूराम के माता पिता ने संतानों की जीवन पर श्राप समझ कर ईश्वर से प्रार्थना(Prayer) की थी कि यदि अब कोई पुत्र हुआ तो उसका पालन-पोषण लड़की की तरह किया जायेगा। इसी मान्यता के कारण बालक रामचंद्र की नाक बचपन में ही छिदवा दिया गया और मान्यता अनुसार रामचंद्र को बालकाल में अपने नाक में एक नथ(नाक की बाली )। भी पहनना पड़ता था इसी के कारण बालक रामचंद्र को नथुराम के नाम से बुलाया जाने लगा।
ब्राह्मण परिवार में जन्म होने के कारण नथुराम का बचपन से ही धार्मिक(Religious) कार्यों में गहरी रुचि थी। इनके छोटे भाई गोपाल गोडसे के अनुसार ये बचपन में ध्यानावस्था में ऐसे-ऐसे विचित्र श्लोक(stanza) बोलते थे जो इन्होंने कभी भी पढ़ें ही नहीं थे। ध्यानावस्था में ये अपने परिवार वालों और उनकी कुलदेवी के मध्य एक सूत्र का कार्य किया करते थे परन्तु यह सब 16 वर्ष तक की आयु(age) तक आते-आते स्वत: समाप्त हो गया।
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यद्यपि इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुणे में हुई थी परन्तु हाईस्कूल के बीच में ही अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी तथा उसके बाद कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली। धार्मिक पुस्तकों में गहरी रुचि होने के कारण रामायण, महाभारत, गीता, पु राणों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानन्द,स्वामी दयानन्द, बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गान्धी के साहित्य का इन्होंने गहरा अध्ययन किया था।
राजनैतिक जीवन -
नाथूराम गोडसे ने माध्यमिक स्कूल की शिक्षा बीच में ही छोडकर हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दू महासभा के साथ जुड़ गये थे | हिन्दू महासभा ने एक बार गांधीजी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन से पीछे हट गये थे और 1940 से शुरू हुए भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था | ये दोनों दल मुस्लिम लीग की कट्टर विरोधी पार्टी थी | Nathuram Godse ने हिन्दू महासभा के लिए एक मराठी पत्रिका “अग्रणी ” का प्रकाशन शुरू किया था जिसे बाद में “हिन्दू राष्ट्र” नाम कर दिया गया | Nathuram Godse को गांधीजी के सिद्धांतो से सख्त नफरत थी और हमेशा उनको हिन्दू विरोधी मानते थे | गोडसे का मानना था कि गांधीजी हिन्दुओ की बजाय मुस्लिमो के सरक्षण में ज्यादा रूचि दिखा रहे थे जो उनको अनुचित और राष्ट्र विरोधी लगती थी |
हैदराबाद आन्दोलन -
सन् 1980 में हैदराबाद के तत्कालीन शासक निज़ाम ने उसके राज्य में रहने वाले हिन्दुओं पर बलात जजिया कर लगाने का निर्णय लिया और जिसका हिन्दू सभा ने विरोध भी किया.
विरोध करने के लिए हिन्दू महासभा के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश(order) पर हिंदु महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला गुट नाथूराम के नेतृत्व में हैदरबाद आया| और जहा निज़ाम ने उन्हें बंदी बना लिया और उन्हें काफी दण्ड(punishment) भी दिया और कुछ समय के बाद निजाम ने हार कर उन्हें रिहा कर दिया और अपना निर्णय वापस ले लिया.
भारत का विभाजन -
जब सन 1947 में भारत का विभाजन हुआ था विभाजन(बटवारा ) के दोरान भारत में हुए साम्प्रदायिक हिंसा ने नाथूराम गोडसे को अत्यंत उद्वेलित कर दिया| उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए तो ये पता चलता है की उस समय की त्रासदी(Tragedy) के पीछे महात्मा गाँधी ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार समझे गए थे.
महात्मा गांधी हत्या की पृष्ठभूमि -
via: youngisthan.in
जब भारत के विभाजान का समझोता हुआ तो भारत ने पाकिस्तान को 75 करोड़ रूपये देने थे और जिसमे से केवल 20 करोड़ दिए गए| और उसी समय पाकिस्तान आक्रमण कर दिया था.
तभी पंडित जवाहरलाल नेहरु ने और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत सरकार के अंतर्गत पाकिस्तान को बाकी पैसे देने से मना करने का फैसला लिया लेकिन गांधी जी इसके खिलाफ अनशन(Hunger strike) पे बैठ गए और गांधी जी का यह निर्णय किसी को भी नहीं अच्छा लगा.
मगर लोग मजबूर थे और इसी तरह गांधी जी और उनके साथी लोगों को भी ये फैसला पसंद नहीं था और तब उन्होंने गांधी जी को मारने का निर्णय लिया.
गाँधी जी को मारने का पहला प्रयास -
गांधी जी के अनशन पे बैठने से सभी लोग दुखी थे| गोडसे और उनके मित्र भी महात्मा गाँधी की इस हरकत से नाराज थे और फिर वे गाँधी जी को मारने के लिए योजनानुसार नई दिल्ली के बिरला हॉउस पहुंचकर 20 जनवरी 1948 को मदनलाल पाहवा ने गाँधी की अनशन सभा में बम फेका योजना के अनुसार बम विस्फ़ोट से वहा बेठे लोगो में उत्पन्न अफरा-तफरी के समय ही Gandhi जी को मोका पा कर मारने की योजना थी.
परन्तु उस समय उसकी पिस्तौल ही जाम हो गयी थी और एकदम चल न सकी और गोडसे और उनके साथी भाग कर पुणे वापस आ गये और मदनलाल पाहवा पकडे गए| भीड़ ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया.
कौनसी पिस्तौल से हुई गाँधी जी की हत्या -
नाथू राम जब गांधी जी को मारने के लिए पुणे से दिल्ली आ रहे थे तब वहां पर पाकिस्तान से आये हिन्दू और सिख शरणार्थियों के शिविर में घूम रहे थे| उस समय नाथूराम की मुलाकात एक शरणार्थी (Refugees) से हुई उसी से नाथूराम ने इतावली नाम की कंपनी की बरोटा पिस्तोल खरीदी.
नाथूराम ने अवैध पिस्तौल रखने का जुर्म भी कबूला था न्यायालय(Court) में और उस शिविर में उन्होंने अपना एक छायाचित्र (फोटो) खिंचवाया और एक चित्र को दो पत्रों के साथ अपने मित्र नारायण आप्टे को पुणे भेजा था.
गाँधी हत्या को अंतिम अंजाम -
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे दिल्ली के बिडला भवन में प्राथना-सभा से करीब 40 मिनट पहले ही पहुँच चुके थे| जैसे ही गांधी प्राथना-सभा के लिए परिसर में दाखिल हुए ही थे की नाथूराम गोडसे सामने आ गए और उन्हें दोनो हाथों(Hands) से नमस्कार किया और बिना किसी देरी के अपनी पिस्तौल से तीन गोलियां चला दी जिस कारण गाँधी जी की मृत्यु हो गयी.
गोडसे का कहना था की गांधी जी अपनी मर्जी की करते थे वे कभी भी भारत के बारे में सही फैसले नहीं लेते थे और किसी भी बात को मनवाने के लिए अनशन पर बैठ जाते थे.
गोली मारने के बाद गोडसे ने भागने की जरा सी भी कोशिश नहीं की थी| वे कहते थे की ऐसा करके उन्हें किसी भी प्रकार का दुःख नहीं है.
आखिर क्यों नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या की इसके पीछे क्या कारण था -
गाँधी जी की हत्या के मुकदमे के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वंय पढ़ कर सुनाने की अनुमति मांगी थी और उसे ये अनुमति मिली थी.बाद में न्यायालय ने गोडसे का यह वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था मगर बाद में उस प्रतिबंध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-हत्या के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने 60 वर्षों(Years) तक कानूनी लड़ाई लड़ी और बाद में उच्च न्यायालय ने उस प्रतिबंध को हटा दिया.
नाथूराम गोडसे ने जो भी गाँधी जी की हत्या(murder) का कारण बताया है सरकार ने किसी भी कारण को उचित नहीं ठहराया है|
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अमृतसर के जलियांवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) मैं लोग चाहते थे की इस सबी के करता जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए और गाँधी जी ने इस बात को मानने से मना कर दिया|
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जब भगत सिंह को फांसी(hanging) दी जा रही थी तब दुनिया गाँधी जी की तरफ देख रही थी की शायद गांधी जी कुछ हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को बचा सकते है हालाँकि वे बचा भी सकते थे मगर गांधी जी के अनुसार भगत सिंह की हिंसा(Violence) को अनुचित ठराया और लोगों की बातों को मना कर दिया|
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6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिए गए अपने सम्बोधन में गांधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी|
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मोह्म्मद् अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं विरोध को अनदेखा किया और खिलाफत आन्दोलन जारी किया| केरल में मुसलमानों द्वारा 1500 हिन्दुओं को मार दिया गया और 2000 को मुसलमान बना लिया| गांधी ने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया|
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गांधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व् गुरु गोबिन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट(misguided) देशभक्त कहा|
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सन् 1926 में स्वामी श्रदान्न्द ने आर्य समाज में शुद्धी आन्दोलन चलाया और उस समय उनकी अब्दुल नामक व्यक्ति न मृत्यु कर दी ये जान्ने के बाद भी गांधी ने रशीद को अपना भाई कहा और रशीद के इस काम को सही माना|
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गांधी ने कश्मीर के राजा हरी सिंह को Kashmir मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने और काशी जाकर प्रायश्चित करने के लिए कहा, और हैदराबाद में निजाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया|
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महात्मा गांधी ने ही मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आजम की उपाधि दी थी|
नाथूराम गोडसे की कहानी जाने | All about Nathuram Godse In Hindi