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गयासुद्दीन बलबन का जीवन परिचय | Gayasuddin Balwan Biography In Hindi
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गुलाम वंश के शासक गयासुद्दीन बलबन की जीवनी | All About Gayasuddin Balwan Bio In Hindi
- नाम- गयासुद्दीन बलबन
- जन्म- 1200 ईसा पूर्व
- जन्म स्थान- तुर्कस्तान, कज़ाखस्तान
- वंश - दिल्ली का मामलुक वंश
- शासन- 1266 से 1287 ईस्वी
- उत्तराधिकारी - मुईजुद्दीन काइकाबाद (पोते)
- संतान- मोहम्मद खान, नसीरूद्दीन बुगरा खान
- मृत्यु- 1286
- समाधि - गयासुद्दीन बलबन की समाधि, दिल्ली के मेहरौली, पुरातत्व पार्क में बलबन के कब्र के रूप में प्रसिद्ध है।
गयासुद्दीन बलबन ने 1266 ई0 से 1287 ई0 तक दिल्ली के सुल्तान के रूप में भारत पर शासन किया। वह मध्यकालीन भारत के सबसे महान सुल्तानों में से एक था।उनकी अवधि दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक शानदार अध्याय के रूप में चिह्नित की गई है। बलबन इल्तुतमिश का गुलाम था और तुर्क के इलबारी जनजाति से संबंधित था। शुरुआत में उन्हें कुछ छोटी नौकरियां मिलीं लेकिन बाद में उन्हे रजिया के मुख्य शिकारी के रूप में काम मिला । इसके पश्चात बहराम को हटा दिए जाने पर हांसी के गवर्नर के रूप में कार्य किया।उन्होंने अपने सुल्तान नसीरउद्दीन महमूद के अधीन 20 वर्षों तक उसके दाहिने हाथ के रूप में कार्य किया और सभी विद्रोहों को कुचल दिया। सुल्तान मुहम्मद की मृत्यु के बाद, बलबन फरवरी 1265में दिल्ली सल्तनत के तख्त पर बैठे। बलबन ने साम्राज्य पर कठोरता से शासन किया । जिसमें मेवात को कुचलने और अधिकारियों और कुलीनों को अनुशासनमें लाना प्रमुख था। बलबन ने सेना को पुनर्गठित किया और चिहलगानी की शक्तियों को कम कर उसके प्रभाव को खत्म कर दिया ।
"एक महान योद्धा,शासक और राजनेता जिसने नवनिर्मित मुस्लिम राज्य को एक महत्वपूर्ण समय पर बिखरने से बचाया, बलबन मध्यकालीन भारतीय इतिहास केएक महान व्यक्ति बने रहेंगे "-डा0 इश्वरी प्रसाद।
आरम्भिक जीवन एवं संघर्ष
गियासुद्दीन बलबन का असली नाम बहाउद्दीन था । गुलाम वंश के शासक के रूप में उसने दिल्ली सल्तनत पर सन 1266 से1286 तक राज्य किया। इलबारी तुर्क जाति से संबंध रखने वाले बलबन की जन्म तिथि का पता नहीं है। उसके पिता के बारे में यह मान्यता है कि वह एक उच्च श्रेणी के सरदार थे। बलबन जब छोटा था, तभी मंगोलों ने उसे पकड़कर बगदाद के बाजार में गुलाम के रूप मे बेच दिया था। किन्तु उसके भाग्य में दिल्ली का सुल्तान बनना लिखा था। बलबन को सुल्तान इल्तुतमीश ने दया करके खरीद लिया था। गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश का नौवां सुल्तान था। बलबन के अंदर असाधारण सैन्य क्षमताएँ थीं जिसके कारण ही वह इल्तुतमीश का सबसे विश्वासपात्र व्यक्ति बन गया । रज़िया सुल्तान ने उसे अमीर-ए –शिकार का पद दिया । मुईजुद्दीन बहरामशाह ने अमीर-ए -आखूर तथा अलाउद्दीन मसूद ने अमीर-ए-हाजिब का पद दिया। वहीं बलबन अमीर-ए-हाजिब के रूप में नसीरुद्दीन महमूद के समय में शक्ति का केंद्र बन गया था। इल्तुतमीश के काल में बलबन की योग्यताओं के कारण सुल्तान ने उसे चेहलगान के दल में शामिल किया था। मुईजुद्दीन बहरामशाह ने बलबन को रेवाड़ी तथा हाँसी के क्षेत्र प्रदान किए थे। बलबन ने 1245 ई0 मे मंगोलों से युद्ध कर अपनी सैन्य क्षमताओं का परिचय दिया था। बलबन की सैन्य क्षमताओं और रणनीति से प्रसन्न होकर नसीरुद्दीन महमूद ने बलबन को अपना प्रधान मंत्री बनाया था। इस पद पर बलबन ने 20 वर्ष तक अपनी सेवाएँ दी। इस पद पर रहते हुए बलबन ने कई चुनौतियों का सामना किया यहाँ तक की उसे एक बार अपमानित भी होना पड़ा। किन्तु वह विचलित नहीं हुआ । अपने दृढ़ इच्छाशक्ति और तीव्र मनोबल के कारण अपने पद पर टिका रहा । उसने कई बार राज्य में होने वाले आंतरिक विद्रोहों का दमन किया , उसने बाहरी आक्रमणों को भी सफल नहीं होने दिया। बलबन ने कडा और कालिंजर के राज्यों पर अपना अधिकार जमा लिया ।
बलबन के खिलाफ षड़यंत्र रचना
उसके इन श्रेष्ठ कार्यों से प्रसन्न होकर सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने अपनी पुत्री का विवाह 1249 ई 0 मे बलबन के साथ कर दिया । इसके पश्चात बलबन को नायब सुल्तान की उपाधि प्रदान की गयी। बलबन ने अन्य राज्यों को जीतने के लिए कई महत्वपूर्ण अभियान किए जिसमें 1252 में ग्वालियर, मालवा और चँदेरी पर किए गए अभियान महत्वपूर्ण है । सुल्तान की दरबार में बलबन के कुछ प्रतिद्वंदी बलबन की बढ़ती हुई प्रतिष्ठा से ईर्ष्या करते थे जिसके कारण बलबन को एक वर्ष तक अपने पद से कार्यमुक्त रहना पड़ा । किन्तु बलबन के शासन से हटते ही राज्य की शासन व्यवस्था काफी बिगड़ गयी। इस कारण वश सुल्तान ने उसे वापस बुला लिया। बलबन ने नसीरुद्दीन महमूद के सौतेले पिता कत्लुग खाँ के विद्रोह को भी शांत किया था। नसीरुद्दीन की मृत्यु के बाद 1266 ई0 में वह गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली का सुल्तान बना । वह इलबारी जाती का दूसरा शासक था। बलबन ने अपना संबंध तूरानी शासक के वंश “अफ़रासियाब” से जोड़ा। बलबन शासकों की जातीय श्रेष्ठता मे विश्वास रखता था, जिसके कारण उसने अपने राज्य के प्रशासन में सिर्फ कुलीन व्यक्तियों को ही उच्च पद दिये । इस विषय पर उसका कहना था की जब “मैं किसी तुच्छ परिवार के व्यक्ति को देखता हु तो मेरे शरीर के प्रत्येक नाड़ी उत्तेजित हो जाती है।“ शासन के क्षेत्र में इल्तुत्मिश द्वारा स्थापित चालीस तुर्की सरदारों के दल का वर्चस्व काफी बढ गया था जो सुल्तान की शक्ति और स्वतंत्र निर्णय के लिए हानिकारक था। इस लिए बलबन ने सफलतापूर्वक चालीस के दल के वर्चस्व को समाप्त कर दिया। उसके साम्राज्य में हुए एक विद्रोह जिसमे बंगाल के शासक तूगरिल खाँ बेग ने अपने को स्वतंत्र घोषित किया था, को दबाने के लिए बलबन ने अवध के सूबेदार अमीन खाँ को भेजा जो की असफल रहा। इस असफलता से क्रोधित होकर बलबन ने अवध के सूबेदार अमीन खाँ का सर कटवाकर अयोध्या के फाटक पर लटका दिया, इसके पश्चात बलबन ने बंगाल के विद्रोह को स्वयं दबा दिया था। बंगाल के विद्रोह को कुचलने के बाद बलबन ने अपने पुत्र बुखरा खाँ को बंगाल का सूबेदार बनाया । बलबन ने अपनी शक्ति को संगठित करने के बाद जिल्ले- इलाही की उपाधि धारण की। बलबन ने तुर्की प्रभाव को कम करने के लिए सिजदा (फारसी परंपरा जिसमे घुटने पर बैठकर सम्राट के सामने सिर झुकाने का चलन है ) और “पाबोस” (जिसमें पाव को चूमना होता है) अनिवार्य कर दिया । बलबन ने अपने गुप्तचार विभाग को भी पूर्ण रूप से अपने नियंत्रण में रखा। बलबन ने ही नवरोज उत्सव को शुरू करवाया था । बलबन की मृतु 1286 ई0 में हुई थी। ऐसा माना जाता है की बलबन के बड़े पुत्र मुहम्मद के मंगोल सेना द्वारा मार दिये जाने के कारण बलबन उसके दुख को सह नहीं पाया जिसके करर्ण उसकी मृत्यु हो गयी, । बलबन ने अपने पुत्र बुगरा खाँ को अपना उत्तराधिकारी बनाया। किन्तु वह ऐशोआराम के चलते दिल्ली न आकार बंगाल वापस चला गया । इस कारणवश बलबन ने मुहम्मद के पुत्र कैखुसरो को अपना उत्तराधिकारी बनाया। बलबन ने सफलता पूर्वक राजपूतों के विद्रोहों और डाकुओं द्वारा किए जाने वाले लूटपाट को रोक लगाने में सफलता प्राप्त की थी।
राजपूत स्वतंत्रता
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दोआब व अवध में सड़कों की हालत ख़राब होने की वजह से और इस एरिया के चारों तरफ डाकुओं के डर की वजह से ये जगह असुरक्षित थीं और इसी कारण से पूर्वी एरिया से सम्पर्क रखना मुश्किल हो गया था । कुछ राजपूत जमींदारो ने इस एरिया में क़िले बना कर अपनी स्वतंत्रता को घोषित कर दिया था । मेवातियों में दिल्ली के इर्द गिर्द(Around) के एरिया में लूटपाट होने लगा था । बलबन ने इन सभी चीजो पर बड़ी मुश्किल से नियंत्रण किया । लूटपाट करने वाले बदमासो को मौत की नींद सुला दी थी । राजपूतों द्वारा बनाये गए क़िलों को हटा दिया गया और जंगलों(
Forests) की साफ सफाई करवा कर वहां अफ़ग़ान सैनिकों के रहने का बंदोबस्त(Settlement) कर दिया गया ताकि वे सड़कों की सुरक्षा कर सकें ।
अंतिम समय
1286 में अपने प्रिय बेटे जिसका नाम मुहम्मद था उसकी मृत्यु का सदमे को सहन ना कर पाने की वजह से 80 साल की आयु में बलबन की मौत हो गई । अपनी मौत से पहले बलबन ने अपने दूसरे बेटे को जिसका नाम “बुगरा ख़ाँ” था उसे उत्तराधिकारी बनाने के लिए बंगाल से बुलवाया था । लेकिन उनका बेटा बंगाल के ऐसो आराम को छोड़ कर नहीं आना चाहता था इसलिए बलबन ने अपने पोते को अपना उत्तराधिकारी बना दिया है एवं पूर्ण अधिकार उसके अधीन कर दिए
गयासुद्दीन बलबन का जीवन परिचय | Gayasuddin Balwan Biography In Hindi