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मोहनजोदड़ो का इतिहास |  History of Mohenjodaro in Hindi

By rakesh / About :-1 year ago

मोहनजोदड़ो का सम्पूर्ण इतिहास | All About History of Mohenjodaro in Hindi

"मोहनजोदड़ो"  को आज पूरा विश्व मानवी सभ्यता के उद्भव की एक और कहानी सुनाने वाले एक प्रस्तोता के रूप में जानता है| मोहनजोदड़ो जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लरकाना जिले से 20 किलोमीटर दूर और सक्खर से लगभर 80 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है जिसका इतिहास कुछ इस प्रकार संदर्भित होता है कि मोहनजोदड़ो का उद्भव 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व के बीच जन्मी नदी घाटी सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी सभ्यता में हुआ था|

सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले दो प्रमुख नगर थे मोहनजोदड़ो और हड्डपा, सिंधु घाटी कि सभ्यता मुख्य रूप से उस समय के दक्षिण एशिया के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज के उत्तर पूर्व अफगानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी हिस्सों के साथ-साथ उत्तर भारत तक फैली हुई है| सिंधु घाटी कि इस सभ्यता को मेसोपोटामियन सभ्यता के समकक्ष रखा जाता है|

सिंधु और सरस्वती नदियों के किनारों पर विकसित हुई सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर के रूप में उभरा था मोहनजोदड़ो जिसे सिंधी भाषा में "मुर्दों के टीले"  के नाम से जानते हैं| हालाँकि इस नदी घाटी कि सभ्यता के अंतर्गत हड्डपा, कालीबंगा, लोथल, राखीगढ़ी जैसे अन्य नगरों का भी जन्म हुआ था परन्तु इन सब में खोदाई के उपरांत मिली संरचनायें इस बात कि ओर इशारा करती हैं कि मोहनजोदड़ों एक ऐसा नगर था जो काफी सुनियोजित तरीके से बसाया गया था, इस नगर के चारो ओर मोटी दीवारें बनायीं गयी थीं जो इसके नगर वासियों व नगर प्रतिनिधियों के सुरक्षा के प्रति उनकी सजकता ही दर्शाता है|

मोहनजोदड़ो और उससे जुड़े इतिहास को और विवेचित करने से पूर्व हमें इस बात को भी जान लेना अनिवार्य है कि इस स्थान को विश्व पटल के सामने सबसे पहले कैसे प्रकाश में लाया गया है| 1856 में एक अंग्रेज इंजीनियर ने रेल रोड बनाते समय इस प्राचीन सभ्यता कि खोज कि और धीरे-धीरे ये आगे बढ़ी| 1922 में राखाल दास बनर्जी, 1924 में काशी नारायण और 1925 में जॉन मार्शल के सर्वेक्षण में यह खुदाई कि गई और ये खुदाई 1965 तक जारी रही| प्राकृत को पहुंच रहे नुकसान के चलते इसकी खुदाई हांलाकि वर्तमान में बंद कर दी गई परन्तु इतनी दिनों कि खुदाई में ही इस नगर के बहुत से रहस्यों से दुनिया अवगत हो चुकी है, की गई खुदाइयों से ये पता चला इस नगर में लोगों के रहने के लिए घर भी बनाये गए थे जो तीन-तीन मंजिला थे और घरों में बाथरूम भी मिले हैं, 

नालियों कि व्यवस्था तो आधुनिकीकरण कि एक मिशाल प्रस्तुत करती प्रतीत होती है, यही नहीं मोहनजोदड़ो से मिले गेहूँ चावल के अवशेष  ये बताते हैं कि इस सभ्यता के लोग खेती करते थे| इस सभ्यता में मिले सिक्के, मूर्तियां, बर्तन, अवजार, लिपि सब इस बात कि ओर इशारा करते है कि उनका जीवन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और कलात्मक आधार पर काफी विकसित हो चुका था| मोहनजोदड़ो के खुदाई में मिला एक सामूहिक स्नानागार और जलकुंड इस सभ्यता के लोगों कि सामाजिक समरसता को प्रदर्शित करता हैं, हलाकि 1/3 भाग की ही खुदाई हो पाई है इस 200 हेक्टेयर वाली सभ्यता की तब भी उतने से ही ये तथ्य प्रदर्शित हो चुके है की कितना विशालकाय स्वरुप होगा यहाँ के निवासियों और उनके द्वारा विकसित सभ्यता का, इनके समापन पर इतिहासकारों में कई तरह के मतभेद है कुछ वाहये आक्रमण को तो कुछ बाड़ में बाह जाने को काल के गाल में समां जाने का कारण मानते हैं||

पचपन सौ साल पुराना है मोहनजोदड़ो का इतिहास| मोहनजोदड़ो की जनसँख्या आंकड़ों के हिसाब से 40 हज़ार से भी अधिक बताई गयी है| इस सभ्यता के बारे में ये मतभेद है कि ये कितनी पुरानी थी| भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने हालहीं में किये गए शोधों से ये पता लगाया है कि ये सभ्यता 55 सौ वर्ष नहीं बल्कि 8 हज़ार वर्ष पुरानी थी| 

इस सभ्यता कि खुदाई में कुओं, आभूषणों, कपड़ों कि रंगाई का कारखाना, एक स्तूप, ताम्बे और कांसे के बर्तन व चाक पर बने विशाल मृदभांड, उनपे काले भूरे चित्र, चौपट कि गोटियां, दिए, मापतौल पत्थर, ताम्बे का आइना, मिट्टी कि बैलगाड़ी और दूसरे खिलोने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिटटी के कंगन, रंग बिरंगे पत्थरों के मानकों वाले हार अन्य के भंडार, शतरंज मिले हैं|

परन्तु वजह जाहे जो भी रही हो मोहनजोदड़ो का इतिहास आज भी हमारे मन में उसको और जाने जाने का कौतुहल पैदा करता हैं| सन 1980 में यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोसित किये गए मोहनजोदड़ो को सिर्फ और सिर्फ मानव जाती की बेटे हुए कल की कहानी कहने वाली धरोहर के रूप में जाना जाता है|

मोहनजोदड़ो का इतिहास |  History of Mohenjodaro in Hindi