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महाराणा कुम्भा के कार्य, युद्ध, जीवनी एवं म्रत्यु | Maharana Kumbha Biography in hindi

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महाराणा कुम्भा के युद्ध एवं जीवनी | All About Maharana Kumbha Biography in hindi
- पूरा नाम - कुम्भकर्ण सिंह
- पिता का नाम - राणा मोकल, मेवाड़
- माता का नाम - सौभाग्य देवी
- राज तिलक - 1433
- शासनकाल - 1433 - 1468 तक
- संतान - ऊदा सिंह
- उपाधियाँ - हिन्दू सुरत्राण
- पूर्वाधिकारी - राणा मोकल
- राजवंश - शिशोदिया राजवंश
मेवाड़ को भारतीय राजनीति में शक्ति के रूप में स्थापित करने वाले राणा कुंभा 1433 से 1468 तक मेवाड़ के राजा थे। इनका असली नाम महाराणा कुंभकर्ण था। कुंभकर्ण सिंह या महाराणा कुंभा महाराणा मोकल और सौभाग्य देवी के बड़े पुत्र थे। मेवाड़ पर उनका शासन लगभग तीस वर्षों तक चला था।महाराणा कुंभा के जन्म का समय विवादित है, किन्तु इनकी मृत्यु 1468 ई0 में हुई थी। महाराणा कुंभा ने सर्वप्रथम मुस्लिम राजाओं को हराकर राजस्थान के राजपूती शासन को नया बल दिया था। विश्व प्रसिद्ध चित्तौड़ का विजय स्तम्भ महाराणा कुंभा की विजय का प्रतीक है। महाराणा कुंभा न केवल एक ख्यातिप्राप्त शासक थे बल्कि राजस्थान में कई भव्य किलों और मंदिरों के निर्माता भी थे। महाराणा कुंभा के अंदर कला और संगीत के प्रति भी आकर्षण था। वे स्वयं एक अच्छे रचनाकार भी थे । उनकी एक रचना संगीतराज काफी प्रसिद्ध है।
कोन थे महाराणा कुंभा
महाराणा कुंभा महाराणा मोकल के पुत्र थे और अपने पिता की मृत्यु के बाद मेवाड़ के राजा बने थे। राणा कुंभा ने सारंग पुर के पास मालवा के सुल्तान महमूद खलजी को परास्त किया था। राणा कुंभा ने अपनी इस विजय का जश्न मनाने के लिए चित्तौड़ में एक विजय स्मारक का निर्माण करवाया था जिसे ‘कीर्ति स्तम्भ’भी कहा जाता है। सन 1437 में उन्होंने आबू पर अधिकार करने के लिए वहाँ के देवड़ा चौहानों को परास्त किया था। कुंभा ने अपनी शक्ति को केंद्रीकृत करते हुए अंदरूनी विद्रोहों को कुचल दिया था। कुंभा ने सांभर, नागौर, अजमेर,रणथम्मौर इत्यादि को अपने राज्य में मिला लिया तथा इसके अतिरिक्त उन्होंने बूंदी, कोटा, डूंगरपुर इत्यादि के सीमावर्ती राज्यों को अपने अधीन कर लिया। किन्तु कोटा का संबंध इससे पहले मालवा, डूंगरपुर, और गुजरात के राज्यों से था। कोटा के राणा कुंभा द्वारा विजित किए जाने से ये तीनों राज्य कुंभा के विरोध में आ गए। किन्तु इन राज्यों के साथ बिगड़ते संबंध के कई कारण और भी थे। नागौर के खान(जिस पर राणा कुंभा ने आक्रमण किया था)ने गुजरात के शासक से मदद की गुहार लगाई । इसके अलावा राणा कुंभा ने महमूद खलजी के एक शत्रु को अपने दरबार में जगह दी थी। यहाँ तक की कुंभा ने उसे मालवा के सिंहासन पर बैठाने का भी प्रयत्न किया था। इसके कारण महमूद खलजी ने महाराणा कुंभा के कई प्रतिद्वंदियों को संरक्षण देकर उन्हे राणा कुंभा के खिलाफ कार्य करने के लिए बढ़ावा दिया था। उदाहरण के लिए राणा कुंभा के भाई को खलजी ने संरक्षण दिया था। गुजरात और मालवा के साथ मतभेद कुंभा को उसके पूरे शासन काल में परेशान करते रहे । महाराणा कुंभा की हत्या उसके ही पुत्र ऊदा सिंह ने राज सिंहासन प्राप्त करने के लिए की थी।
राणा कुंभा का साम्राज्य एवं संघर्ष
राणा कुंभा को मारवाड़ के राठौड़ों से भी सावधान रहने की आवश्यकता थी। किन्तु सभी दिशाओं से आने वाली चुनौतियों के बावजूद राणा कुंभा मेवाड़ में अपनी स्थिति को स्थिर बनाए रखने मे कामयाब रहे।, गुजरात की सेना ने कुंभलगढ़ को कई बार बंधक बनाया था , जबकि महमूद खलजी अजमेर तक नियंत्रण करने में सफल हुआ था । खलजी ने अजमेर में अपने एक राज्यपाल को भी नियुक्त किया था। राणा ने इन आक्रमणों का उचित जवाब दिया और अपने अधिकांश क्षेत्रों को खलजी के नियंत्रण से वापिस लाने में सफलता प्राप्त की। राणा कुंभा द्वारा गुजरात और मालवा जैसे दो शक्तिशाली राज्यों के बीच अपनी स्थिति को स्थिर बनाए रखना कोई सामान्य उपलब्धि नहीं थी। राणा कुंभा के शत्रुओं ने युद्ध मे मिली पराजय का बदला लेने के लिए कई बार प्रयत्न किए किन्तु वे महाराणा कुंभा के खिलाफ सफल नहीं हो सके। महाराणा कुंभा ने राजस्थान , गुजरात, मालवा, और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर मेवाड़ के साम्राज्य में मिला लिए थे। इस प्रकार मेवाड़ का राज्य काफी विस्तृत हो गया था। महाराणा कुंभा ने सोने, चाँदी और तांबे के सिक्के चलाये थे। उनके द्वारा चलाये गए सिक्कों के अध्ययन से पता चलता है कि वो गोलाकार और चौकोर दो प्रकार के थे। राणा कुंभा के द्वारा ब्राह्मणों और अन्य धार्मिक लोगों को दिये गए अनुदान का विवरण भी प्राप्त होता है।
राणा कुंभा द्वारा दुर्ग एवं मूर्तियों का निर्माण
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कुंभा विद्वानों और कलाकारों का आश्रय दाता था। वह स्वयं भी उच्च कोटी का विद्वान था। राणा कुंभा ने कई किताबें लिखी हैं ,जिनमे से कुछ अभी भी पढ़ी जा सकती हैं। उसके महल के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि वह स्थापत्य कला का अच्छा जानकार था। राणा कुंभा ने कृषि के लिए कई तालाबों और जलाशयों का निर्माण कराया था। उसके समय में बनाए गए कुछ मंदिरों से यह प्रमाणित होता है कि मूर्ति और स्थापत्य कला अभी भी अपने उच्च आदर्शों के साथ मौजूद थे । चित्तौड़ का विजय स्तंभ एक नौ मंज़िला इमारत है तथा इसे 1442 से 1449 के बीच में बनाया गया। विजय स्तंभ भारतीय मूर्तिकला का व्यापक संग्रह है। आज यह राजस्थान पुलिस और राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह भी है।महाराणा कुंभा के कार्यों की समीक्षा की जाय तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जितनी महत्वपूर्ण उनकी सैन्य विजय थी, उतने ही महत्वपूर्ण उनके द्वारा कराये गए निर्माण और सांस्कृतिक कार्यों में दिये गए योगदान हैं,। । बसंतपुर को दोबारा बसाकर एकलिंग के मंदिर का पुनर्निर्माण भी कुंभा ने ही करवाया था। एक महान योद्धा होने के साथ-साथ महाराणा कुंभा संगीत प्रेमी भी थे। उन्होने चंडीशतक और गीतगोविंद जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थों की व्याख्या भी की है । इसके अलावा संगीत वाद्यों में वे एक कुशल वीणावादक थे ।
राणा कुंभा ने पूरे मेवाड़ राज्य का नवनिर्माण कराया था। उन्होने उसका दोबारा से जीर्णोद्धार भी किया। था। मेवाड़ के 84 किलों मे से (जो मेवाड़ की सुरक्षा रूपी दीवार का कार्य करते हैं) 82 राणा कुंभा द्वारा बनाए गए थे। कुंभलगढ़ का किला महाराणा कुंभा ने ही बनवाया था। राणा कुंभा द्वारा बनाया गया कुंभलगढ़ का किला राजस्थान का सबसे ऊंचाई पर स्थित किला है । अरावली पहाड़ों के पश्चिमी भाग में स्थित यह किला स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है,जिसकी दीवारें 38 किलोमीटर लम्बी हैं। यह चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लम्बी दीवार है।कुंभा का किला यात्रियों के बीच अपनी स्थापत्य कला के लिए काफी प्रसिद्ध है । यही वो मेवाड़ है, जहां रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रीयों के साथ अलाउद्दीन खिलजी से अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए जौहर किया था। इसके अलावा रणकपुर का तीर्थंकर ऋषभनाथ को समर्पित विश्वप्रसिद्ध जैन मंदिर (आदि जैन मंदिर) तथा चित्तौड़ का कुंभाश्याम मंदिर भी राणा कुंभा के काल में ही बनाया गया। कुंभा श्याम मंदिर भगवान विष्णु के वराह अवतार को समर्पित है। रणकपुर का जैन मंदिर जैन संप्रदाय के सबसे विशालतम और भव्य मंदिरों में गिना जाता है। चित्तौड़ का आदिवर्ष मंदिर भी उन्हीं के शासन काल की देन है।महारणा कुंभा ने अपने शासन के द्वारा राजस्थान के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी है, वो इतिहास में हमेशा राजस्थान के महान राजाओं के बीच गिने जाएंगे । यही कारण है की महाराणा कुंभा शासकों के बीच “परमगुरु” की उपाधि धारण करने वाले पहले शासक हैं।
किन्तु इतने महान शासक के घर भी एक भेडिये ने जन्म लिया था| जिसका नाम था उद्धा सिंह था ये कोई और नही महाराणा कुम्भा का अपना ही पुत्र था | जिसने राजगद्दी के लिए अपने ही पिता की हत्या कर दी थी |
महाराणा कुम्भा के कार्य, युद्ध, जीवनी एवं म्रत्यु | Maharana Kumbha Biography in hindi




