महात्मा गांधी का दांडी आंदोलन | Mahatma Gandhi Dandi March in Hindi

महात्मा गांधी का दांडी आंदोलन | Mahatma Gandhi Dandi March in Hindi

In : News By storytimes About :-1 month ago
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महात्मा गांधी का दांडी आंदोलन | All About Mahatma Gandhi's Dandi March in Hindi

दांडी आंदोलन भारतीय स्वंत्रता संग्राम के लिए छेड़े गए आंदोलनों में एक अदुतीय मक़ाम रखता है| ऐसा इस लिए है क्योंकि ये आंदोलन भारत के अतीत को जितना गरिमामय बनाता है वही वर्तमान में भी इसकी गूंज हमेशा गुंजायमान होती रहती है, तभी तो अमेरिका की टाइम पत्रिका ने इस आंदोलन को दुनिया के दस बड़े आन्दोलनों में से एक माना है| टाइम पत्रिका का कहना है की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को इस आंदोलन से एक नई और ऊर्जावान गति मिली थी| 

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असहयोग आंदोलन के बाद अपनी भूमिका को गाँधी ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से परे रखकर सामाजिक सेवा धर्म के भाव को अपना लिया था, हालांकि बीच में किये गए अन्य आंदोलनों जैसे साइमन कमीशन का विरोध, पूर्णया स्वराज की मांग को उन्होंने अपना मर्यादित समर्थन दे रखा था परन्तु 1928 में पूर्ण आंदोलन से उन्होंने खुद को एक बार जोड़ा जरूर परन्तु दांडी आंदोलन के रूप में पूर्ण सत्याग्रह का बेडा उन्होंने खुद अकेले उठाया|

 

दांडी आंदोलन जिसे महात्मा गाँधी द्वारा " नमक सत्याग्रह" का नाम दिया गया था गाँधी द्वारा चलाये गए प्रमुख आन्दोलनों में से एक था| इस आंदोलन के तहत 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 14 दिनों को पैदल मार्च निकाला गया था| यह मार्च नमक पर ब्रिटिश राज्य के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए निकाला गया था| अहिंसा के मार्ग से शुरू हुआ ये आन्दोलन ब्रिटिश राज्य के खिलाफ बगावत का बिगुल बनकर उभरा|

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जब भारत में अंग्रेजो का शासन था तो उन्होंने भारत की अमूल्य कही जाने वाली निधियों को अपने हाथ में ही समेट रखा था, दूसरे शब्दों में ब्रिटिश रूलर ने भारत के चाय, नमक, कपड़ा जैसे सभी प्रमुख व्यवसाय को अपने अधिपत्य में समाहित कर रखा था| उस समय दैनिक चर्या में उपयोगी की जाने वाली नमक जैसी वस्तु को भी भारतीयों को बनाने की मनाही थी| हमारे पुरवज इंग्लैंड से आ रही नमक की ज्यादा कीमत चुकाते थे|

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हालाँकि गाँधी के नमक कर को सत्याग्रह के लिए चुने जाने वाले विषय से बाकि स्वतंत्रता सेनानी सहमत न थे फिर भी बिना किसी पोस्टर बैनर के ही बापू ने दांडी में नमक बनाकर इस सत्याग्रह के मोर्चे को भारत ही नहीं पुरे विश्व की उत्सुकता का केंद्र बना दिया था, और भारत की एक बड़ी आबादी को इससे जोड़ने में वे कामयाब भी रहे| बापू के इस आंदोलन ने अंग्रेजों किए नींद उड़ा दी, इस यात्रा में उनके 79 अनुयायियों ने उनका साथ दिया| 240 मिल लम्बी इस यात्रा में हालाँकि गाँधी ने अपनी इस यात्रा की सूचना तत्तकालीन वाइसराय लार्ड एर्विन को पूर्व दे रखी थी पर एर्विन शायद इस बात पूरी तरह अनभिज्ञ थे की गाँधी का ये सत्याग्रह जो नमक जैसी तुच्छ चीजों से जुड़ा है कैसे भारतीय स्वाधीनता का वाहक बन पायेगा| परन्तु हर घर में प्रोयोगिक इस नमक ने पूरे देश में जागरूकता की एक ऐसे धारा प्रभावित की जिसमे ब्रिटिश सरकार के अहंकारवादी नीतियां कहीं न कही प्रलयता का शिकार होती परिलक्षित होती हैं और एक अकेले गाँधी ने ब्रिटिश सरकार की चूलें हिला दिया जिसके दम पर वो वर्षों से भारत पर शासन  कर रहे थे|

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