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पेशवा बाजीराव प्रथम की जीवनी एवं साम्राज्य | Peshwa Bajirao I Biography In Hindi

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पेशवा बाजीराव की जीवनी | All About Peshwa Bajirao I Biography In Hindi
- पूरा नाम - पंतप्रधान श्रीमंत पेशवा बाजीराव बल्लाल बालाजी भट
- जन्म- 18 अगस्त 1700
- पिता का नाम - बालाजी विश्वनाथ
- माता का नाम - राधाबाई
- पत्नियों के नाम -पहली पत्नी-काशीबाई दूसरी पत्नी मस्तानी ,(1728)
- उपाधियाँ - श्रीमंत, महान पेशवा , हिन्दू सेनानी सम्राट राऊ
- मृत्यु - 28 अप्रैल 1740
- मृत्यु स्थान - रावेरखेडी, पश्चिम निमाड, मध्य प्रदेश
- समाधी - नर्मदा नदी घाट, रावेरखेडी
- पूर्वाधिकारी - बालाजी विश्वनाथ पेशवा
“बाजीराव बल्लालभट” तथा “थोरले बाजीराव”के नाम से प्रसिद्ध पेशवा बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य के महान सेनापति थे । मराठा साम्राज्य के ये एकमात्र अपराजित सेनानायक थे जिन्हे युद्ध में कभी हार का मुँह नहीं देखना पड़ा था। मराठा पेशवाओं में हुए सभी नौ पेशवाओं में इन्हे सर्वश्रेष्ट माना जाता है । बाजीराव महान शिवाजी के पौत्र छत्रपति शाहूजी के पेशवा थे। बालाजी विश्वनाथ के पुत्र पेशवा बाजीराव प्रथम ने अपने रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का बहुत विस्तार किया था । 18 वीं सदी का यह योद्धा मुग़लों को भी चुनौती देने में सफल हुआ था।
प्रारंभिक जीवन-
पेशवा बाजीराव को बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवार, भाला, लाठी, बनेठी इत्यादि चलाने का शौक था और बहुत जल्द ही इन्होने इसमें महारत हासिल कर ली थी। 18 अगस्त सन 1700 को जन्मे बाजीराव ने बचपन से ही राजनीति की सूक्ष्मताओं का समझना शुरू कर दिया था । बाजीराव के पिता बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के मंत्री थे। बचपन में बिताए हुए अपने पिता के साथ समय ने बाजीराव को राज दरबार की परम्पराओं और वहाँ होने वाली चालों के के बारे में अनुभव दे दिया था। किन्तु बाजीराव के पिता की असमय मृत्यु के कारण उनका राजनीतिक अनुभव पूरा नहीं हो सका।
राजनीति में प्रवेश-
अपने पिता की मृत्यु के समय बाजीराव केवल 19 वर्ष के ही थे। किन्तु बाजीराव के अंदर मौजूद जोश इतना ज्यादा था की उनकी कम आयु उनके सामने चुनौती नहीं बन सका। शाहू जी ने विश्वनाथ पेशवा की मृत्यु के बाद बाजीराव को 1720 ई० में पेशवा नियुक्त कर दिया। यह अवसर बाजीराव के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि पेशवा के पुत्र को पेशवा बनाए जाने के बाद यह पद व्यावहारिक रूप से वंशपरंपरागत बन गया था। बाजीराव ने पेशवा के रूप में २० वर्षों तक अपनी सेवाएँ दीं । राजनीति में आने के बाद बाजीराव का प्रभाव बहुत बढ़ गया था जिसके कारण शाहूजी मात्र नाम के ही शासक रह गए थे । असली शासन की ताकत बाजीराव के हाथों में आ गयी थी । भारत के इतिहास में शिवाजी और महाराणा प्रताप के बाद कोई व्यक्ति हुआ जिसने मुग़लों की ताकत को चुनौती दी तो वह बाजीराव ही था । “हिन्दू पद पादशाही” का सिद्धान्त भी भारत में बाजीराव ने ही सर्वप्रथम दिया था ।
बाजीराव का साम्राज्य विस्तार-
via: ndtvimg.com
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बाजीराव के समय में भारत की सामान्य जनता मुग़लों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के अत्याचार से काफी त्रस्त थी । लेकिन ऐसे समय में बाजीराव ने अपने मराठा साम्राज्य का विस्तार कर इनके कृत्यों को रोक दिया और धर्म तथा न्याय पूर्वक शासन कर सामान्य जनता को राहत दिलाई । बाजीराव के द्वारा समूचे उत्तर भारत को अपने अधीन लाया गया। बाजीराव ने 1724 में शकरखेडला में मुबारीज़ खाँ को हराया तो वहीं 1724-26 के दौरान मालवा तथा कर्नाटक पर विजय प्राप्त कर अपने प्रभुत्व को स्थापित किया । पालखेड़ के एक युद्ध में मराठों के शत्रु निजाम-उल-मुल्क को हरा कर बाजीराव ने उससे चौथ और सरदेशमुखी के रूप में कर वसूला । बाजीराव ने इसके पश्चात 1727 में मालवा और बुंदेलखंड के मुग़ल सेनानायकों गिरधरबहादुर और दयाबहादुर को हराकर अपने अधीन कर लिया । इनके अलावा बाजीराव ने मुहम्मद खाँ बंगश और त्रियंबकराव को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। पूरे हिंदुस्तान के इतिहास में बाजीराव अकेला ऐसा योद्धा था जिसने 41 लड़ाइयाँ लड़ीं और एक भी नहीं हारा। वह अपने सभी अभियानों में अजेय था । जनरल माण्ट्गोमरी जो की द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रह चुके थे, ने अपनी किताब "हिस्टरी ऑफ वारफेयर" में बाजीराव की जमकर तारीफ की है। उन्होने लिखा है की बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली अद्भुत थी और बाजीराव कभी हारा नहीं । बाद में इस युद्ध नीति को द्वितीय विश्व युद्ध में अपनाया गया जिसे "ब्लिट्ज़क्रिग" के नाम से जाना गया ।
बाजीराव का दिल्ली अभियान-
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यह बाजीराव ही था जो नर्मदा के पार अपनी सेना ले जाकर 400 वर्ष पुराने मुग़लों के शासन को ललकारने की ताकत रखता था । ऐसा माना जाता है की बाजीराव ने 10 दिन की दूरी केवल 48 घंटों में पूरी की थी वह भी बिना रुके, बिना थके। इस अभियान में बाजीराव ने केवल 500 घोड़ों का ही उपयोग किया था । भारत के इतिहास में केवल दो ही अभियान इतने तेज माने जाते हैं एक तो बाजीराव का और दूसरा अकबर का आगरा से गुजरात का सफर केवल 9 दिनों में तय करना। दिल्ली पर डेरा डाल कर मुग़लों को उसकी ताकत का एहसास कराने वाला बाजीराव अभी युवा ही था। किन्तु उसके डर से 12वां मुग़ल बादशाह और औरंगजेब का नाती लाल किले से बाहर नहीं निकला और दिल्ली छोड़ कर भागने ही वाला था। लेकिन बाजीराव 3 दिन तक दिल्ली को बंधक बना कर रखने के बाद और मुग़लों को अपनी ताकत दिखा कर लौट आया ।इस अभियान में बाजीराव के 500 सैनिकों ने मुग़लों के 8 से 10000 हजार सैनिकों को बुरी तरह से परास्त किया था । यह अभियान मराठा शक्ति के चरमोत्कर्ष का अभियान था। बाजीराव के अभियानों ने महाराष्ट्र के साथ साथ पूरे पश्चिम भारत को मुग़लों के नियंत्रण से मुक्त करा लिया था। बाजीराव ने दक्कन के निजाम, जो अपने आप को मुग़लों से स्वतंत्र घोषित कर चुका था, को कई बार हराया था। उसने दक्कन के निजाम के ऊपर कई शर्ते लगाकर उसे अपने नियंत्रण में कर के छोड़ दिया था।
बाजीराव ने अपनी तलवार का लोहा पूरे हिंदोस्तान में मनवाया था। उसके द्वारा किए गए अभियानो में एक चतुर रणनीतिकार के सारे गुण मौजूद थे । इतिहासकारों के अनुसार बाजीराव की मृत्यु 28 अप्रैल १७४० को केवल 39 वर्ष की उम्र में ही हुई थी। ऐसा माना जाता है की यदि बाजीराव की असमय मृत्यु नहीं हुई होती तो भारत पर न कोई अहमदशाह अब्दाली आक्रमण कर पाता और ना हीं ब्रिटिश ताक़तें ही अपना साम्राज्य बना पाती । बाजीराव की असमय मौत केवल महाराष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण थी । कच्छ में बनाया हुआ उनका आईना महल अभी भी बाजीराव द्वारा कराए गए कार्यों की दास्तां बयान करता है। १७३५ में बनारस में बाजीराव द्वारा बनाया गया घाट मराठा ताकत के धर्म प्रियता और जनता के कल्याण के लिए किए गए कार्यों की गंभीरता लिए हुए विद्यमान है।
बाजीराव और मस्तानी
मस्तानी उस समय के बुंदेलखंड के हिन्दू महराजा छत्रसाल बुंदेला की बेटी थी | महराजा छत्रसाल के बहुत सारी पत्निया थी उनमे से कई मुस्लिम धर्म की भी थी | महाराज छत्रसाल का एक मुस्लिम नाचने वाली पर दिल आ गया और उन्होंने उसे अपनी पत्नी बना लिया , जिनका नाम रूहानी बाई था. इसी रूहानी बाई के जो पुत्री ने जन्म लिया उसका नाम मस्तानी था | मस्तानी का जन्म मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के एक गाँव में हुआ था. मस्तानी बेहद खूबसूरत थी, जो तलवारवाजी, घुड़सवारी, मार्शल आर्ट व घर के सभी कामकाज में निपुड थी. कला, साहित्य व युद्ध में इन्हें महारत हासिल थी. मस्तानी बहुत अच्छा नाचती व गाती भी थी. मस्तानी राजपूत घराने में जन्मी थी, लेकिन अपनी माँ की तरह उन्होंने मुस्लिम धर्म को ही अपनाया था | एक बार बाजीराव वे मुगलों से महाराज छत्रसाल और उनके राज्य की रक्षा करी थी | महाराज ने बाजीराव को बहुत सारा धन उपहार सवरूप दिया था | जब बाजीराव बुंदेलखंड रुके तो वो मस्तानी के योवन और बातो से आकर्षित होकर अपना दिल मस्तानी को दे बेठे,बाजीराव ने मस्तानी को पूना बुलवा लिया | लेकिन बाजीराव के परिवार ने कभी भी मस्तानी को स्वीकार नही किया क्यों की वो एक मुसल्मान नाचने वाली की बेटी थी और बाजीराव ब्राहमण थे | इस बात का बाजीराव के दिल पर बहुत बड़ा असर हुआ था | जो योद्धा कभी भी जंग में नही हारा अपने ही घर में हार गया |
पेशवा बाजीराव प्रथम की जीवनी एवं साम्राज्य | Peshwa Bajirao I Biography In Hindi




