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वीरांगना रानी दुर्गावती का सम्पूर्ण इतिहास | Rani Durgavati History In Hindi

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जब भी भारत देश के इतिहास में महिलाओं के बलिदान की बात आती है तब झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, रानी चेन्नमा, ओंरगजेब को लोहे के चने चबाने वाली मराठा रानी ताराबाई आदि वीर साहसिक महिलाओं का बलिदान हमें इतिहास में देखने को मिलता है, साथ ही दोस्तो बात महिलाओं की वीरता की हो रही है तो हम रानी दुर्गावती की वीरता और साहस को कैसे भूल सकते है जिन्होंने मध्यकाल युग मे दुनिया पर राज करने वाले मुगल राजा सम्राटअकबर जैसे बडे़ शासक का वीरता से सामना किया था. दोस्तो रानी दुर्गावती में वीरता और शौर्य का पराक्रम इस कदर था की उनके इस साहस को देखकर अकबर भी पीछें हट गया था.
भारत के इतिहास की रानी दुर्गावती वो वीरांगना थी जिन्होंने अपने जीवन में आए विकट समय से लड़ते हुए आगे बढी अपने पति की मौत के बाद उन्होंने गोंडवाना राज्य की गद्दी संभाली साथ ही एक वीर शासक की तरह अपने राज्य गोंडवाना की रक्षा के लिए कई लड़ाईया लड़ी रानी दुर्गावती अपने अंत समय तक मुगलों से गोंडवाना राज्य की रक्षा करते-करते वीरगति को प्राप्त हुई.
रानी दुर्गावती के पति राजा दलपत सिंह की मृत्यू के बाद दुर्गावती ने गोंडावाना राज्य पर पुरें 15 सालों तक एक कुशल शासक के रूप मे राज्य पर शासन के साथ अपनी गोंडवाना राज्य की प्रजा के लिए कई भलाई कें कार्य भी किए. दोस्तो आज जब भी इतिहास में महिलाओं की वीरांगना की बात होती है तब रानी दुर्गावती के नाम को बड़े गर्व के साथ आगे लिया जाता है. तो चलिए दोस्तो जानते एक वीर रानी की कहानी कैसे अपने राजा की मृत्यू के बाद शासन सम्भाला और दुश्मनों से अपने राज्य की रक्षा की.
रानी दुर्गावती शुरुआती जीवन | Rani Durgavati Life Story In Hindi
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गोंडवाना की वीर साहसी रानी दुर्गावती का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा कालिंजर के महान राजपुत शासक कीरत राय के यहां 5 अक्टूबर 1524 को हुआ था. दोस्तो रानी दुर्गावती को वीरता और साहस की हिम्मत उन्हें पिता से विरासत में मिली , क्योंकि रानी दुर्गावती के पिता कीरत राय एक महान और साहसी योद्धा थे, सम्राट करीत राय ने सबसे क्रूर शासक महमूद गजनी को भी युद्ध में धुल चटा दी थी.
दोस्तो इतिहास में इस बात का उल्लेख किया गया है की जिस दिन रानी दुर्गावती का जन्म हुआ था उस दिन दुर्गाष्टमी का दिन था, और यही कारण था की उनके जन्म के बाद उनका नाम दुर्गावती रखा गया. रानी दुर्गावती का अती सुदंर रूप और उनके अदंर का साहस किसी को भी किसी को उनकी और आर्कषित कर देता था. जन्म से ही रानी दुर्गावती के गुण बाकी लड़कियों से थोडे़ं भिन्न थे.
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बचपन से ही रानी दुर्गावती को निशानेबाजी, तलवारबाजी, तीरंदाजी के साथ बंदूक चलाने के साथ युद्ध के दौरान अपनाई जानें वाली कलाओं को सीखनें में काफी रूची थी. और जब वो पिता के साथ जंगल में शिकार के लिए जाती तब शिकार करने के लिए पिता से भी ज्यादा उतावली रहती थी. जगंल में जब भी उन्हें कोई शेर या चीता दिख जाता था तो वो उन्हीं के शिकार के लिए निकल जाती थी. दुर्गावती ने बचपन में अपने पिता से युद्ध कौशल के गुण सीखें
विवाह के बाद रानी दुर्गावती का जीवन संघर्ष | Rani Durgavati In Hindi
रानी दुर्गावती का विवाह वर्ष 1542 गोढ़ वंश के शासक राजा दलपत शाह के साथ हुआ था. दोस्तो रानी दुर्गावती के इस विवाह से उनके पिता कीरत राय खुश नही थे लेकिन दलपत शाह के पिता राजा संग्रामसिंह से कलिंजर युद्ध में पराजय के कारण उनकों रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह के साथ करना पड़ा.
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दोस्तो आपको बता दें की राजा संग्रामसिंह एक वीर और साहसी योद्धा थे. राजा संग्रामसिंह ने ही गोंडवाना राज्य की स्थापना की और कई राज्यों को युद्ध में परास्त कर गोंडवाना राज्य का विस्तार किया था. राजा संग्रामसिंह के निधन के बाद गोंडवाना राज्य की बागडोंर उनके पुत्र दलपत शाह को दी गई. जब राजा दलपत सिंह गोंडवाना की राजगद्दी पर बैठें थे उससे कुछ समय पहले ही उनका विवाह रानी दुर्गावती के साथ हुआ था तब उस दौर के सबसे क्रूर शासक शेर शाह सूरी गौंढ समेत पुरें चंदेल राज्यों पर अपना आधिपत्य जमाने की योजना बना रहा था.
गोंढ राज्य ने शेर शाह सूरी की इस चाल को समझते हुए चंदेल वश के साथ संधि कर ली, बाद में शेर शाह सूरी की बम गिरने के कारण मृत्यु हो गई. शादी के बाद रानी दुर्गावती को पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका वीर नारायन नाम रखा गया. रानी दुर्गावती के विवाह के 8 साल बाद उनके जीवन में दुखों का सागर आ गया 1550 ईस्वी में अचानक उनके पति और चंदेल वश के शासक दलपत सिंह का निधन हो गया रानी दुर्गावती के जीवन का यह सबसे कठिन समय था लेकिन इन सब परिस्थितियों के आगे हार न मानते हुए रानी दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य की सत्ता को अपने हाथ में लेने का फैसला किया.
रानी दुर्गावती की चंदेल शासक के रूप मे शुरूआत | Rani Durgavati In Hindi
रानी दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य की सत्ता संभालने के बाद सबसे पहले इसकी राजधानी मे बदलाव करते हुए गोंडवाना की राजधानी चौरागढ़ को बनाया जो दोस्तो आज वर्तमान में (नरसिंहपुर जिलें के पास स्थित गाडरवारा मे है.) वहीं दुसरी और शेर शाह सूरी की मौत के बाद सुजात खान ने 1556 ईस्वी मे मालवा पर अपना अधिकार जमा लिया था. अब सुजात खान की नजर चंदेल राज्य की और थी उसने गोंडवाना राज्य की महिला शासक होने की सोच के साथ गोंडवाना पर हमला कर दिया जिसका नतीजा उसे हार से चुकाना पड़ा.
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इस युद्ध मे रानी दुर्गावती ने सुजात खान साहस और वीरता का दिखाते हुए पराक्रम सामना किया और युद्ध में सुजात खान को खदेड़ दिया रानी दुर्गावती की सुजात खान पर इस जित के चर्चे गोंडवाना राज्य के साथ कई राज्यों मे हुए और तब दुर्गावती गोंडवाना राज्य के लोगो के बीच एक उत्कृष्ट राजा के रूप में लोकप्रिय हो गई. गोंडवाना राज्य की गद्दी को संभालने के बाद दुर्गावती ने अपनी प्रजा की भलाई के अनेक कार्य किए. उन्होंने प्रजा की यातायात सुविधा के लिए सड़को का निर्माण करवाया राज्य में पर्यावरण की रक्षा के लिए पुरे राज्य में पेड़-पोधे लगवाएं धर्मशालाओं का निर्माण कर गोंडवाना राज्य को एक खुशहाल राज्य बना दिया
दुसरी और चारों तरफ गोंडवाना राज्य की ख्याती और महानता को सुन गोंडवाना राज्य बडे़ शासकों की नजर में आ गया सभी शासक गोंडवाना राज्य को अपने अधिन करने के बारें में विचार बनाने लगें लेकिन दोस्तो वो सभी शासक अभी तक रानी दुर्गावती के पराक्रम से परिचित नही थे.
मुगल सम्राट अकबर के सामने वीरांगना रानी दुर्गावती का पराक्रम | Rani Durgavati And Akbar Fight History In Hindi
गोंडवाना राज्य के चर्चे जब मुगल राजा अकबर तक पंहुचे तब वो रानी दुर्गावती की किस्से सुन गोंडवाना राज्य को हथियाने के बारें मे सोचने लगा वासना के भुखा अकबर रानी दुर्गावती को अपने दरबार की रंगरेलियों में शामिल करना चाहता था.
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अपनी इस नियत के चलते अकबर ने दुर्गावती को एक कमजोर महिला शासक समझकर उन पर दबाब बनाना शुरू कर दिया. रानी दुर्गावती ने अकबर की इन चालाक नीतियों को समझ लिया और अकबर की किसी भी बात को स्वीकार नही किया तब अकबर ने 1560 में अपने सेनापति ख्वाजा मजीद(असफ खां) को गोंडवाना राज्य पर आक्रमण करते के आदेश दें दिए और रानी दुर्गावती को कैद कर दरबार में पेश करने के लिए कहा.
अकबर की सेना से वीरता से लड़ी रानी दुर्गावती | Rani Durgavati And Asaf khan Fight History In Hindi
मुगल सम्राट अकबर का आदेश पाकर उनका सेनापती असफ खां विशाल सेना के साथ गोंडवाना राज्य की और निकल पड़ा, गोंडवाना पहुँचकर असफ खां ने युद्ध की शुरूआत करने से पहले रानी दुर्गावती को अकबर की अधिनता स्वीकार करने के बारें मे कहा लेकिन एक क्षत्राणी होने ओर अपने अडिग संकल्पो के कारण रानी दुर्गावती ने असफ खां की किसी बात पर हां नही किया उसे युद्ध के लिए आमंत्रित किया दोनो सेनाओं के बीच भंयकर युद्ध हुआ असफ खां विशाल सेना होने के बावजुद गोंडवाना की सेना उन पर भारी पड़ी रानी दुर्गावती ने वीरता के साथ युद्ध मे लड़ते हुए इस युद्ध में विजय हासिल की.
ऐसे ही असफ खां ने 3 बार गोंडवाना राज्य पर हमला किया लेकिन 3 बार उसे रानी दुर्गावती ने धुल चटाई. अपनी लगातार तीन हार के बाद असफ खां बुरी तरह क्रोधित हो गया ओर 1564 में छल के साथ फिर से उसने गोंडवाना राज्य पर हमला बोल दिया और किलें को चारों तरफ से घेर लिया लेकिन फिर भी रानी दुर्गावती और उनके पुत्र नारायण सिंह ने इस युद्ध में अकबर की इस विशाल सेना का मुकाबला किया दोनो इस युद्ध मे बुरी तरह से घायल हो गए.
रानी दुर्गावती का अंतिम समय | Rani Durgavati Death History In Hindi
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युद्ध मे लड़ते - लड़ते रानी दुर्गावती बुरी तरह घायल हो गई उनकी आंख तीर लगने के कारण बुरी तरह से घायल हो गई सेना के साथी सैनिकों ने रानी दुर्गावती को युद्ध स्थल छोड़ कर जाने की सलाह दी लेकिन कायर योद्धा की तरह उन्होंने युद्ध स्थल छोड़ने से मना कर दिया और दुश्मनों से लड़ती रही लेकिन अंत में वो काफी घायल हो गई तब उन्होंने सोचा की इन दुश्मनों के हाथों से मरना अच्छा है वो खुद के ही प्राण लें लें तब उन्होंने अपनी तलवार सीनें मे घोप ली और 24 जून 1564 को वीरगतीं को प्राप्त हो गई. जिस किलें पर इस युद्ध को लड़ा गया था वो किला मध्य प्रदेश के जबलपुर मे स्थित है जिसका नाम है "मदन लाल किला" यहां पर रानी दुर्गावती की समाधी भी बनी हुई है.
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