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मराठा रानी ताराबाई का इतिहास | Tarabai History In Hindi
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औरंगजेब के सपनो को चूर-चूर करने वाली रानी ताराबाई का जीवन इतिहास | Rani Tarabai In Hindi
दोस्तों जब भी हम मराठा साम्राज्य के बारे में जानते है तब हमें मराठा के सबसे समझदार शासकों में एक छत्रपति शिवाजी महाराज की ही वीर गाथाएं पढ़ने को मिलती है। शिवाजी द्वारा अनेकों लड़े गए युद्ध एवं बलिदान को आज भी इतिहास में याद किया जाता है। लेकिन दोस्तों जब भी मराठा साम्राज्य की आन-बान और इज्जत पर बात आयी तब शिवाजी के परिवार के कई लोगो ने मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी उनमे से एक है रानी ताराबाई - Rani Tarabai in Hindi.
मराठा साम्राज्य के राजा शिवाजी प्रथम के द्वितीय पुत्र छत्रपति राजाराम महाराज की एक विधवा रानी ताराबाई थी। ताराबाई छत्रपति शिवाजी महाराज की बहु थी। रानी ताराबाई का जन्म 1675 ईस्वी में हुआ था । ताराबाई मराठा सेना के सेनापति हंबीरराव मोहिते की बेटी थी।
रानी ताराबाई एक निडर और शक्तिशाली महिला थी। मराठा साम्राज्य के छत्रपति राजाराम महाराज की मृत्यु होने के बाद रानी ताराबाई ने मराठा साम्राज्य की कमान संभाली थी। जब ताराबाई ने मराठा साम्राज्य की कमान ली उस समय मराठा साम्राज्य को एक अच्छे नेतृत्व की आवश्यकता थी और वो ताराबाई ने पूरी कर दी ताराबाई ने मुग़ल सम्राट औरंगजेब का भी डटकर सामना किया था.
जब 1680 में छत्रपति शिवाजी ने मराठा साम्राज्य का साथ छोड़ दिया था इस खबर को सुन मुग़ल साम्राज्य का सम्राट औरंगज़ेब अत्यधिक प्रसन्न हुआ । शिवाजी की मृत्यु के बाद मुग़ल सम्राट ने सोचा की अब ये सबसे अच्छा मौका है दक्षिण पर अपना अधिकार ज़माने का और अब ये उनके लिए आसान भी हो गया है।
शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र संभाजी को मराठा साम्राज्य की गद्दी पर बैठाया गया। संभाजी ने राजा बनते ही बीजापुर और मुगलो कई ठिकानो पर हमले किये। औरंगजेब का मकसद था दक्षिण पर अपना आधिपत्य करना था उसने अपनी सेना के साथ दक्षिण पर जमावड़ा शुरू कर दिया ताकि पुरे भारत पर अपने साम्राज्य का सपना पूरा हो सके।
औरंगजेब ने 1686 और 1687 में बीजापुर एवं गोलकुंडा पर अपना अधिकार कर लिया । जब औरंगजेब ने बीजापुर पर हमला किया था तब अपने सैनिको के छल के कारण संभाजी महाराज को 1689 में औरंगजेब ने पकड़ लिया और उनकी हत्या कर दी।
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संभाजी महाराज की हत्या के बाद मराठा साम्राज्य पर उनका छोटा पुत्र "शिवाजी द्वितीय" मराठा साम्राज्य की गद्दी पर बैठा । जब शिवाजी द्वितीय मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने तब वो उम्र में काफी छोटे थे। इस बात का फायदा उठाते हुए औरंगजेब ने उनका उपहरण कर लिया और सौदेबाजी करने के लिए अपनी जेल में कैद कर लिया बाद में औरंगजेब ने शिवाजी द्वितीय का नाम बदलकर शाहू रख दिया।
शिवाजी द्वितीय को कैद कर औरंगजेब काफी खुश था और मन ही मन सोच रहा था की अब उसकी जीत निश्चित है । क्योंकि औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य के सभी उत्तराधिकारियों को ख़त्म कर दिया था। मराठा साम्राज्य में संभाजी महाराज की मृत्यु और इनके पुत्र शिवाजी द्वितीय औरंगजेब के द्वारा अपहरण के बाद मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी संभाजी के छोटे भाई राजाराम जो ताराबाई के पति थे उनको ये कार्यभार सौंपा गया
मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी बनने के बाद राजाराम ने मुगलो के साथ कई युद्ध लड़े लेकिन एक बीमारी के चलते राजाराम की 1700 मृत्यु हो गई।
अब मराठा साम्राज्य के सामने सबसे बड़ा संकट ये आ गया की उनके पास कोई भी पुरुष उत्तराधिकारी नहीं था। अब मराठाओं के पास राज्याभिषेक करने के लिए सिर्फ विधवाएँ और उनके छोटे बच्चे ही थे। औरंगजेब इस बात को सुन अत्यधिक खुश हुआ की अब मराठा साम्राज्य समाप्ति की और है।
लेकिन दोस्तों औरंगजेब ने सोचा भी नहीं था की इस बार भी उसका अंदाजा गलत साबित होगा. क्योंकि अब मराठा साम्राज्य की पूर्ण बागडोर 25 साल की रानी ताराबाई ने अपने हाथ में ले ली थी। और अपने छोटे पुत्र शिवाजी द्वितीय को राजा घोषित कर दिया जो महज 4 वर्ष के थे।
मराठा का शासन हाथ में आते ही ताराबाई ने अपनी नीतियों से मराठा सरदारों को अपनी सेना में मिलाया और अपने सेना पक्ष को मजबूत किया और साथ राजाराम की दूसरी पत्नी राजसबाई को जेल में डाल दिया।
अपनी मजबूत सेना के साथ ताराबाई ने कई सालो तक शक्तिशाली बादशाह औरंगजेब से युद्ध लड़े । ताराबाई ने युद्ध से पहले औरंगजेब के द्वारा अपनाई जाने वाली रिश्वत नीति अपना कर औरंगजेब की सेना के कई राज मालूम किये । अपने इस साहस और हिम्मत से ताराबाई ने मराठा साम्रज्य की प्रजा का विश्वास जीत लिया था। दूसरी और मराठाओं को खत्म करने की अधूरी कसक लिए मुगलो के सम्राट औरंगजेब का 1707 ईस्वी में मृत्यु हो गई.
9 दिसम्बर, 1761 ई तक रानी ताराबाई जीवित रही। जब ताराबाई ने अब्दाली जिन्हें अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है उनके हाथो से पानीपत के युद्ध में दो लाख से ज्यादा मराठों को मरते हुए देखा तो उनके ये धक्का सा लग गया और वो इसे बर्दाश्त नहीं कर सकी और 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
दोस्तों रानी ताराबाई के इस साहस और हिम्मत को मराठा साम्राज्य का इतिहास कभी नहीं भुला पाएगा रानी ताराबाई की सबसे खास बात ये थी की इस अकेली रानी ने मुगलों की ताकतवर सेना का कई बार सामना किया और इस दौरान उन्होंने 6 प्रांतो को भी जीता था। दोस्तों जो काम कई बड़े शूरवीर राजा नहीं कर सके वो काम रानी ताराबाई ने अकेले कर दिखाया था।
मराठा रानी ताराबाई का इतिहास | Tarabai History In Hindi